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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Ibn e Insha

1927 - 1978 | Karachi, Pakistan

Pakistani poet known for his ghazal "kal chaudhanvi ki raat thi, shab bhar raha charcha tera".

Pakistani poet known for his ghazal "kal chaudhanvi ki raat thi, shab bhar raha charcha tera".

Quotes of Ibn e Insha

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सच ये है कि काहिली में जो मज़ा है वो काहिल ही जानते हैं। भाग दौड़ करने वाले और सुबह-सुबह उठने वाले और वरज़िश-‏पसंद इस मज़े को क्या जानें।

औसत का मतलब भी लोग ग़लत समझते हैं। हम भी ग़लत समझते थे। जापान में सुना था कि हर दूसरे आदमी ‏के पास कार है। हमने टोकियो में पहले आदमी की बहुत तलाश की लेकिन हमेशा दूसरा ही आदमी मिला। मा'लूम हुआ पहले ‏आदमी दूर-दराज़ के देहात में रहते हैं।

किसी दाना या नादान का मक़ूला है कि झूट के तीन दर्जे हैं। झूट, सफ़ेद झूट और आ'दाद-ओ-शुमार।

दुनिया में ये बहस हमेशा से चली रही है कि अंडा पहले या मुर्ग़ी। कुछ लोग कहते हैं अंडा। कुछ का कहना है मुर्ग़ी।‏ एक को हम मुर्ग़ी स्कूल या फ़िर्क़ा-ए-मुर्गिया कह सकते हैं। दूसरे को अंडा स्कूल। हमें अंडा स्कूल से मुंसलिक‏ समझना चाहिए। मिल्लत-ए-बैज़ा का एक फ़र्द जानना चाहिए। हमारा अ'क़ीदा इस बात में है कि अगर आदमी थानेदार या मौलवी‏ या'नी फ़क़ीह-ए-शहर हो तो उसके लिए मुर्ग़ी पहले और ऐसा ग़रीब-ए-शहर हो तो उसके लिए अंडा पहले और ग़रीब-ए-शहर से भी गया ‏गुज़रा हो तो उसकी दस्तरस मुर्ग़ी तक हो सकती है अंडा उसकी गिरफ़्त में सकता है। उसे अपनी ज़ात और इसकी‏ बक़ा को इन चीज़ों से पहले जानना चाहिए।

बटन लगाने से ज़्यादा मुश्किल काम बटन तोड़ना है। और ये एक तरह से धोबियों का कारोबारी राज़ है। हमने घर पर कपड़े‏ धुलवा कर और पटख़वा कर देखा लेकिन कभी इस में कामयाबी हुई जब कि हमारा धोबी उन्ही पैसों में जो हम‏ धुलाई के देते हैं, पूरे बटन भी साफ़ कर लाता है। एक और आसानी जो उसने अपने सरपरस्तों के लिए फ़राहम की है,‏ वो ये है कि अपने छोटे बेटे को अपनी लांडरी के एक हिस्से में बटनों की दुकान खुलवा दी है जहाँ हर तरह के बटन‏ बा-रिआयत निर्ख़ों पर दस्तयाब हैं।

जब कोई चीज़ नायाब या महंगी हो जाती है तो उसका बदल निकल ही आता है जैसे भैंस का ने’अम-उल-बदल मूंगफली। आप‏को तो घी से मतलब है। कहीं से भी आए। अब वो मरहला गया है कि हमारे हाँ बकरे और दुंबे की सनअ'त भी‏ क़ाएम हो। आप बाज़ार में गए और दुकानदार ने डिब्बा खोला कि जनाब ये लीजिए बकरा और ये लीजिए पंप से हवा इस में ख़ुद‏ भर लीजिए। खाल इस बकरे की केरेलेन की है। और अंदर कमानियाँ स्टेनलेस स्टील की। मग़्ज़ में फ़ोम रबड़ है। वाश‏ ऐंड वियर होने की गारंटी है। बाहर सेहन में बारिश या ओस में भी खड़ा कर दीजिए तो कुछ बिगड़ेगा। हवा निकाल कर‏ रेफ्रीजरेटर में भी रखा जा सकता है। आजकल क़ुर्बानी वाले यही ले जाते हैं।

एक ज़माने में अख़बारों से सिर्फ़ ख़बरों का काम लिया जाता था। या फिर लोग सियासी रहनुमाई के लिए उन्हें पढ़ते थे। आज ‏तो अख़बार ज़िंदगी का ओढ़ना-बिछौना हैं। सेठ इसमें मंडियों के भाव पढ़ता है। बड़े मियाँ ज़रूरत-ए-रिश्ता के ‏इश्तिहारात मुलाहिज़ा करते हैं और आहें भरते हैं। अ'ज़ीज़ तालिब-इ'ल्म फ़िल्म के सफ़हात पर नज़र टिकाता है इ'ल्म इलम की दौलत‏-ए-नायाब पाता है। बी-बी इस में हंडिया भूनने के नुस्खे़ ढूँढती है और बा'ज़ लोगों ने तो अख़बारी नुस्खे़ देख-देख‏ कर मतब खोल लिए हैं। पिछले दिनों औ'रतों के एक अख़बार में एक बीबी ने लिख दिया था कि प्रेशर कूकर तो महंगा‏ होता है उसे ख़रीदने की ज़रूरत नहीं। ये काम ब-ख़ूबी डालडा के ख़ाली डिब्बे से लिया जा सकता है। किफ़ायत-शिआ'र बीवीयों ने ‏ये नुस्ख़ा आज़माया। नतीजा ये हुआ कि कई ज़ख़्मी हुईं और एक-आध बीबी तो मरते-मरते बची।

एक ज़माना था कि हम क़ुतुब बने अपने घर में बैठे रहते थे और हुआ कि हम ख़ुद गर्दिश में रहने हमारा सितारा गर्दिश में रहा करता था। फिर ख़ुदा का करना ‏ऐसा हुआ कि हम ख़ुद गर्दिश में रहने लगे और हमारे सितारे ने कराची में बैठे-बैठे आब-ओ-ताब से चमकना शुरू‏’ कर दिया। फिर अख़बार जंग में “आज का शाइर” के उ'नवान से हमारी तस्वीर और हालात छपे। चूँकि हालात हमारे कम‏ थे लिहाज़ा उन लोगों को तस्वीर बड़ी करा के छापनी पड़ी और क़ुबूल-सूरत, सलीक़ा-शिआ'र, पाबंद-ए-सौम-ओ-सलात औलादों के‏ वालिदैन ने हमारी नौकरी, तनख़्वाह और चाल-चलन के मुतअ'ल्लिक़ मा'लूमात जमा' करनी शुरू कर दें। यूँ ऐ'ब-बीनों और ‏नुक्ता-चीनियों से भी दुनिया ख़ाली नहीं। किसी ने कहा ये शाइर तो हैं लेकिन आज के नहीं। कोई बे-दर्द बोला, ये आज के तो‏ हैं लेकिन शाइर नहीं। हम बद-दिल हो कर अपने अ'ज़ीज़ दोस्त जमीलउद्दीन आली के पास गए। उन्होंने हमारी ढारस ‏बँधाई और कहा दिल मैला मत करो। ये दोनों फ़रीक़ ग़लती पर हैं। हम तो तुम्हें शाइर जानते हैं आज का मानते हैं।‏ हमने कसमसाकर कहा, “ये आप क्या फ़र्मा रहे हैं?” बोले, “मैं झूट नहीं कहता और ये राय मेरी थोड़ी है सभी‏ समझदार लोगों की है।”

एक जंतरी ख़रीद लो और दुनिया-भर की किताबों से बे-नियाज़ हो जाओ। फ़ेहरिस्त-ए-तातीलात इसमें, नमाज़-ए-ई'द और नमाज़-ए-जनाज़ा ‏पढ़ने की तराकीब, जानवरों की बोलियाँ, दाइमी कैलेंडर, मुहब्बत के तावीज़, अंबिया-ए-किराम की उ'म्रें, औलिया-ए-किराम की करामातें,‏ लकड़ी की पैमाइश के तरीक़े, कौन सादन किस काम के लिए मौज़ूँ है। फ़ेहरिस्त-ए-उ'र्स-हा-ए-बुज़ुर्गान-ए-दीन, साबुन-साज़ी के‏ गुर, शेख़ सा'दी के अक़्वाल, चीनी के बर्तन तोड़ने और शीशे के बर्तन जोड़ने के नुस्खे़, आज़ा फड़कने के नताइज, कुर्रा-ए-‏अर्ज़ की आबादी, तारीख़-ए-वफ़ात निकालने के तरीक़े।

बटन लगाने से ज़्यादा मुश्किल काम बटन तोड़ना है। और ये एक तरह से धोबियों का कारोबारी राज़ है।

हमारे ख़याल में अख़बारों के डाइजिस्ट भी निकलने चाहिएँ क्योंकि किसके पास इतना वक़्त है कि बारह-बारह चौदह-‏चौदह सफ़्हे पढ़े। लोग तो बस तोस का टुकड़ा मुँह में रख, चाय की प्याली पीते हुए सुर्ख़ियों पर नज़र डालते हैं। बड़ा ‏अख़बार निकालने के लिए यूँ भी लाखों रुपये दरकार होते हैं। हमारा इरादा है कि “सुर्ख़ी” के नाम से एक रोज़नामा निकालें‏ और पब्लिक की ख़िदमत करें।

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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