कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर के शेर
हम उन के सितम को भी करम जान रहे हैं
और वो हैं कि इस पर भी बुरा मान रहे हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मुस्कुराना कभी न रास आया
हर हँसी एक वारदात बनी
-
टैग : मुस्कुराहट
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
आएँ हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग
-
टैग : वाइज़
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
उठा सुराही ये शीशा वो जाम ले साक़ी
फिर इस के बाद ख़ुदा का भी नाम ले साक़ी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मरना तो लाज़िम है इक दिन जी भर के अब जी तो लूँ
मरने से पहले मर जाना मेरे बस की बात नहीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
शोख़ी शबाब हुस्न तबस्सुम हया के साथ
दिल ले लिया है आप ने किस किस अदा के साथ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
फिर इस के बाद हमें तिश्नगी रहे न रहे
कुछ और देर मुरव्वत से काम ले साक़ी
-
टैग : तिश्नगी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ज़िंदगी मौत बन गई होती जान से हम गुज़र गए होते
इतने इशरत-ज़दा हैं हम कि अगर ग़म न होता तो मर गए होते
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
किसी इक-आध मय-कश से ख़ता कुछ हो गई होगी
मगर क्यूँ मय-कदे का मय-कदा बद-नाम है साक़ी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इश्क़ ओ मोहब्बत क्या होते हैं क्या समझाऊँ वाइज़ को
भैंस के आगे बीन बजाना मेरे बस की बात नहीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इन शोख़ हसीनों की निराली है अदा भी
बुत हो के समझते हैं कि जैसे हैं ख़ुदा भी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हर लम्हा माँगते हैं दुआ दीद-ए-यार की
याद-ए-बुताँ भी दिल में है याद-ए-ख़ुदा के साथ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मिरे सवाल-ए-विसाल पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो
तुम्हीं बताओ ये बात क्या है सवाल पूरा जवाब आधा
-
टैग : विसाल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
साक़ी मय साग़र पैमाना मेरे बस की बात नहीं
सिर्फ़ इन्ही से दिल बहलाना मेरे बस की बात नहीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
परेशाँ थे तिरी महफ़िल से बाहर
पशेमाँ हैं तिरी महफ़िल में आ कर
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जुस्तुजू उन की दर-ए-ग़ैर पे ले आई है
अब ख़ुदा जाने कहाँ तक मिरी रुस्वाई है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से बे-नियाज़ाना निकलता है
बड़ी फ़र्ज़ानगी से तेरा दीवाना निकलता है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी अभी है मुझ पर इताब आधा
-
टैग : इश्क़
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड