Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Maikash Akbarabadi's Photo'

मयकश अकबराबादी

1902 - 1991 | आगरा, भारत

प्रसिद्ध शायर के अलावा आलोचक और इक़बालिया के विशेषज्ञ थे और तसव्वुफ इनका मिज़ाज था।

प्रसिद्ध शायर के अलावा आलोचक और इक़बालिया के विशेषज्ञ थे और तसव्वुफ इनका मिज़ाज था।

मयकश अकबराबादी के शेर

979
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

मिरे फ़ुसूँ ने दिखाई है तेरे रुख़ की सहर

मिरे जुनूँ ने बनाई है तेरे ज़ुल्फ़ की शाम

पहुँच ही जाएगा ये हाथ तेरी ज़ुल्फ़ों तक

यूँही जुनूँ का अगर सिलसिला दराज़ रहा

तिरी ज़ुल्फ़ों को क्या सुलझाऊँ दोस्त

मिरी राहों में पेच-ओ-ख़म बहुत हैं

आप की मेरी कहानी एक है

कहिए अब मैं क्या सुनाऊँ क्या सुनूँ

ये मस्लक अपना अपना है ये फ़ितरत अपनी अपनी है

जलाओ आशियाँ तुम हम करेंगे आशियाँ पैदा

थी जुनूँ-आमेज़ अपनी गुफ़्तुगू

बात मतलब की भी लेकिन कह गए

सब कुछ है और कुछ नहीं दाद-ख़्वाह-ए-इश्क़

वो देख कर देखना नीची निगाह से

नहीं है दिल का सुकूँ क़िस्मत-ए-तमन्ना में

तुम्हें भी दिल की तमन्ना बना के देख लिया

ज़बाँ पे नाम-ए-मोहब्बत भी जुर्म था यानी

हम उन से जुर्म-ए-मोहब्बत भी बख़्शवा सके

बैठे रहे वो ख़ून-ए-तमन्ना किए हुए

देखा किए उन्हें निगह-ए-इल्तिजा से हम

कुछ इस तरह तिरी उल्फ़त में काट दी मैं ने

गुनाहगार हुआ और पाक-बाज़ रहा

चराग़-ए-कुश्ता ले कर हम तिरी महफ़िल में क्या आते

जो दिन थे ज़िंदगी के वो तो रस्ते में गुज़ार आए

नज़'अ तक दिल उस को दोहराया किया

इक तबस्सुम में वो क्या कुछ कह गए

हम ने लाले की तरह इस दौर में

आँख खोली थी कि देखा दिल का ख़ूँ

Recitation

बोलिए