नसीर अहमद नासिर के शेर
अभी वो आँख भी सोई नहीं है
अभी वो ख़्वाब भी जागा हुआ है
ख़मोशी झाँकती है खिड़कियों से
गली में शोर सा फैला हुआ है
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रात भर ख़्वाब देखने वाले
दिन की सच्चाइयों में चीख़ उठे
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फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए
दर्स-गाहों में निसाबों की थकन बाक़ी रही
हवा गुम-सुम खड़ी है रास्ते में
मुसाफ़िर सोच में डूबा हुआ है
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मोहब्बत के ठिकाने ढूँढती है
बदन की ला-मकानी मौसमों में
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टैग : बदन
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लोग फिरते हैं भरे शहर की तंहाई में
सर्द जिस्मों की सलीबों पे उठा कर चेहरे
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जब पुकारा किसी मुसाफ़िर ने
रास्ते खाईयों में चीख़ उठे
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