उबैद हारिस के शेर
नया चार दिन में पुराना हुआ
यही सब हुआ तो नया क्या हुआ
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खोलो न कोई ऐब किसी का भी यहाँ पर
आसेब को मिल जाएगा दरवाज़ा खुला सा
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तह-ब-तह खुलती ही रहती है सदा
'मीर' के दीवान सी है ज़िंदगी
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हम किताबों में जिसे पाते हैं 'हारिस'
आदमी वैसा कोई मिलता कहाँ है
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इन्हें आगे निकल जाने दो 'हारिस'
बलाएँ कब से पीछा कर रही हैं
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अपना सच उस को सुनाने के लिए
हम को क़िस्सों का हवाला चाहिए
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वक़्त बदला सोच बदली बात बदली
हम से बच्चे कह रहे हैं हम नए हैं
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