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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

सलीम शहज़ाद के शेर

हवा की ज़द में पत्ते की तरह था

वो इक ज़ख़्मी परिंदे की तरह था

ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़

अपने होने का पता काफ़ी है

बातों में है उस की ज़हर थोड़ा

थोड़ा सा मज़ा शराब जैसा

अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना

रह गया जो कुछ भी सोचा सोच ले

उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी

तो फिर वो अब्र को क्यूँ साएबाँ समझता है

आग भी बरसी दरख़्तों पर वहीं

काल बस्ती में जहाँ पानी का था

वहम ख़िरद के मारे हैं शायद सब लोग

देख रहा हूँ शीशे के घर चारों ओर

कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना

गिन चुके हो साअतों के तार तो वापस चलो

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