शाहिद मीर के दोहे
जीवन जीना कठिन है विष पीना आसान
इंसाँ बन कर देख लो ओ 'शंकर' भगवान
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हर इक शय बे-मेल थी कैसे बनती बात
आँखों से सपने बड़े नींद से लम्बी रात
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
ज़ेहन में तू आँखों में तू दिल में तिरा वजूद
मेरा तो बस नाम है हर जा तू मौजूद
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
काग़ज़ पर लिख दीजिए अपने सारे भेद
दिल में रहे तो आँच से हो जाएँगे छेद
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आँगन है जल-थल बहुत दीवारों पर घास
घर के अंदर भी मिला 'शाहिद' को बनवास
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
तातीलें रुख़्सत हुईं खुले सभी स्कूल
सड़कों पर खिलने लगे प्यारे प्यारे फूल
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
'शाहिद' लिखना है मुझे ये किस की तारीफ़
डरा डरा सा क़ाफ़िया सहमी हुई रदीफ़
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
शब गुज़री बुझने लगा रौशनियों का शहर
लौटी साहिल की तरफ़ थकी थकी इक लहर
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
दर्द है दौलत की तरह ग़म ठहरा जागीर
अपनी इस जागीर में ख़ुश हैं 'शाहिद-मीर'
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रास आई कुछ इस तरह शब्दों की जागीर
'शाहिद' पीछे रह गए आगे बढ़ गए 'मीर'
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया