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सय्यद अमीन अशरफ़

1930 - 2013 | अलीगढ़, भारत

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

सय्यद अमीन अशरफ़ के शेर

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है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती बयाबाँ

आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता

इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब फ़लक-ताब

इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा

लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए

आँख होती है तो होता नहीं क़ाबू दिल पर

किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते

कि अफ़्साने मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार होते हैं

इक ख़ला है जो पुर नहीं होता

जब कोई दरमियाँ से उठता है

हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला

दर्द इस दीदा-ए-तर से नहीं जाने वाला

जिसे ना-ख़्वाब कहते हैं उसी को ख़्वाब कहते हैं

तमीज़-ए-ख़ैर-ओ-शर में नुकता-ए-सद-मोतबर क्या है

कहीं पे दस्त-ए-निगारीं कहीं लब-ए-ल'अलीं

वो सोते सोते मिरी नींद का उचट जाना

इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी

जैसे नशा हो रात का या सुब्ह का तड़का हुआ

मैं पर-शिकस्ता था बादलों के बीच मगर

मिरी उड़ान का ज़ंजीर से लिपट जाना

कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय है

जिधर कमाँ है उधर जाएगा कभी कभी

हवा का तब्सिरा ये साकिनान-ए-शहर पे था

अजीब लोग हैं पानी पे घर बनाते हैं

है इर्तिबात-शिकन दाएरों में बट जाना

चमन का मौजा-ए-बाद-ए-सबा से कट जाना

मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जुनूँ से दुनिया को

कि सहल भी नहीं शायान-ए-आरज़ू होना

अजब नहीं कि हो दीवार नुक़्ता-ए-मौहूम

मकान हो कि मकीं दो दिलों का मिलना देख

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