विशाल खुल्लर के शेर
ग्रंथ इक प्रेम का पढ़ा मुझ को
और किताबों का ज्ञान रहने दे
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आग दरिया को इशारों से लगाने वाला
अब के रूठा है बहुत मुझ को मनाने वाला
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असीर-ए-ज़ुल्फ़ को शायद यहीं रिहाई है
पुकारता हूँ जिसे वो सदा में आया है
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उसे तुम चाँद से तश्बीह देना
कि उस के हाथ में ख़ंजर खुला था
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दिल जो अब शोर करता रहता है
किस क़दर बे-ज़बान था पहले
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टैग : दिल
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उसी के शेर सभी और उसी के अफ़्साने
उसी की प्यास का बादल घटा में आया है
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मेरे दुख की दवा भी रखता है
ख़ुद को मुझ से जुदा भी रखता है
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मैं इंसाँ था ख़ुदा होने से पहले
अनल-हक़ की अना होने से पहले
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दीवार-ओ-दर सा चाहिए दीवार-ओ-दर मुझे
दीवानगी में याद नहीं अपना घर मुझे
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लुत्फ़-ए-मंज़िल हौसलों से आ लगा था गाम गाम
तू सफ़र में साथ था तो रास्ता अच्छा लगा
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वो जिस्म रूह ख़ला आसमान है क्या है
कि रंग कोई हो उस से जुदा नहीं मिलता
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