मैं झूठ नहीं बोलूंगा
जावेद नौ-दस साल का लड़का था, निहायत तमीज़-दार और पढ़ाई-लिखाई में तेज़। न किसी से लड़ता-झगड़ता था और न ही अपनी किसी बात से किसी की दिल-आज़ारी करता था। उसकी अच्छी आदतों की वजह से स्कूल में उसकी तमाम उस्तानियाँ और दोस्त और घर में उसकी अम्मी और अब्बू उससे बहुत ख़ुश थे। अच्छे बच्चों से सब ही ख़ुश रहते हैं।
चूँकि उसका न कोई भाई था न बहन, इसलिए वो अगर घर में होता तो अपनी अम्मी के पीछे-पीछे ही फिरता रहता था और उनको स्कूल में होने वाली हर बात बताता। अम्मी कोई काम कर रही होतीं तो काम में उनका हाथ बटाता। जावेद की एक अच्छी बात ये भी थी कि वो स्कूल से कभी छुट्टी नहीं करता था। उसे इस बात का इल्म था कि छुट्टियाँ करने वाले बच्चे पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं। अगर कभी बुख़ार की वजह से उसकी तबीयत ख़राब हो जाती तो उसकी अम्मी को ज़बरदस्ती उसकी छुट्टी करवाना पड़ती थी वर्ना वो तो छुट्टी करने पर राज़ी ही नहीं होता था।
उसके अब्बू एक प्राईवेट कंपनी में एकाउंटैंट थे और कंपनी का सारा हिसाब-किताब का काम उनके ज़िम्मे था। जिस कंपनी में वो काम करते थे वहाँ गाय-भैंसों का दूध साइंटिफ़िक तरीक़ों से डिब्बों में बंद कर के मुल्क भर में सप्लाई किया जाता था। हफ़्ते के छः दिन उसके अब्बू काम पर होते थे और उन छः दिनों में भी रात को देर से घर आते थे। अपनी इन मसरुफ़ियात की वजह से वो जावेद को ज़्यादा टाइम नहीं दे सकते थे मगर उनको इस बात पर बहुत इत्मीनान होता था कि उनकी सख़्त मेहनत की वजह से उनके घर वालों की ज़िंदगी बग़ैर किसी फ़िक्र के हंसी-ख़ुशी गुज़र रही है।
जिस घर में वो रहते थे वो उनका अपना था। वैसे तो उन्हें कंपनी वालों की तरफ़ से ट्रांसपोर्ट की सहूलत हासिल थी, मगर उन्होंने कुछ अरसे पहले एक गाड़ी भी ख़रीद ली थी ताकि जावेद की अम्मी और जावेद को उनकी ग़ैर-मौजूदगी में कहीं आना-जाना हो तो उन्हें किसी क़िस्म की कोई परेशानी न उठानी पड़े। उनको एहसास था कि उन्हें ये सारी आसाइशें उनकी कंपनी की वजह से हासिल थीं, इसलिए वो इज़हार-ए-तशक्कुर के तौर पर बहुत ज़्यादा दिल लगा कर अपनी ड्यूटी अंजाम देते थे।
इतवार या किसी दूसरी छुट्टी वाले दिन जावेद बहुत ख़ुशी महसूस करता था क्योंकि उस रोज़ उसके अब्बू घर पर होते थे। जावेद पूरी कोशिश करता था कि छुट्टी वाले रोज़ सुब्ह-सवेरे उठ कर अब्बू के पास ही जा कर बैठ जाए। उसके अब्बू छुट्टी वाले दिन या तो अख़बार पढ़ते थे या फिर टीवी देखते रहते थे। ऐसे में जावेद अपने खिलौने और छोटी-छोटी कहानियों की किताबें ले कर उनके पास ही क़ालीन पर बैठ जाता था।
अब्बू कभी-कभी टीवी या अख़बार से नज़रें हटा कर उसको भी देख कर मुस्कुरा देते। उनकी ये मुस्कुराहट जावेद को बहुत अच्छी लगती थी। वो छुट्टी वाले रोज़ अपने अब्बू से किसी क़िस्म की कोई ज़िद नहीं करता था। उसकी अम्मी ने उसको समझा रखा था कि उसके अब्बू पूरे हफ़्ते ऑफ़िस के कामों में मसरूफ़ रहते हैं, छुट्टी वाला दिन उनके आराम का होता है, इसलिए उनको तंग नहीं करना चाहिए।
जावेद अपनी अम्मी की हर बात ग़ौर से सुनता था और उस पर अमल भी करता था। उसने कभी भी अपने अब्बू को बेजा ज़िदों से तंग नहीं किया था। उसके अब्बू कभी-कभी उसे और उसकी अम्मी को घुमाने-फिराने भी ले जाते थे। महीने में एक-आध बार वो लोग बाहर खाना भी खाने जाते थे।
आज भी जावेद के अबू ड्राइंग-रूम में टीवी पर अपने पसंदीदा प्रोग्राम से लुत्फ़-अंदोज़ हो रहे थे। खुला हुआ अख़बार उनके हाथ में था, प्रोग्राम के दौरान जब वक़्फ़ा होता और उस वक़्फ़े के दौरान मुख़्तलिफ़ क़िस्म के इश्तिहार दिखाए जाने लगते तो वो अख़बार की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते।
उस वक़्त जावेद ने अपने खिलौनों की बास्केट में से तमाम छोटी-बड़ी गाड़ियाँ निकाल ली थीं और मुँह से गाड़ी के इंजन की आवाज़ निकाल कर झूट-मूट की रेस लगा रहा था। उसकी अम्मी किचन में खाना बनाने में मसरूफ़ थीं। छुट्टी वाले रोज़ वो बड़ी अच्छी-अच्छी चीज़ें पकाती थीं और इस बात पर बहुत ख़ुश होती थीं कि दोपहर के खाने पर सब साथ होंगे।
अचानक इत्तिलाई घंटी की आवाज़ कानों में आई। जावेद के अब्बू चौंक गए। उन्होंने जावेद की तरफ़ देखा तो वो उठ कर खिड़की की तरफ़ आया और थोड़ा सा पर्दा हटा कर बाहर झाँका और बोला, “अब्बू, जमील अंकल आए हैं।”
टीवी पर उसके अब्बू की पसंद का प्रोग्राम आ रहा था। जमील उनका दोस्त था मगर उसकी इस बे-वक़्त की आमद ने उन्हें बद-मज़ा कर दिया था, उन्होंने जावेद से कहा, “जाओ उनसे कह दो अब्बू घर पर नहीं हैं।” ये कह कर वो फिर टीवी की तरफ़ मुतवज्जह हो गए।
उनकी ये बात सुन कर जावेद ने अपना सर खुजा कर उनकी तरफ़ देखा। उसकी आँखों में अजीब से तास्सुरात थे और वो कुछ कहना चाह रहा था। जावेद को हुक्म दे कर उसके अब्बू दुबारा टीवी देखने लगे थे। जब जावेद ने देखा कि वो उसकी तरफ़ मुतवज्जह नहीं हैं तो वो ख़ामोशी से अपनी गाड़ियों के पास सर झुका कर बैठ गया।
कुछ देर बा’द घंटी फिर बजी तो उसके अबू झुंजला गए। उन्होंने ग़ुस्सैली नज़रों से जावेद को देखा और क़दरे तेज़ आवाज़ में बोले, “बेटा तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा है?”
घंटी की उस दूसरी आवाज़ पर उसकी अम्मी भी किचन से निकल कर वहाँ आ गई थीं। अब्बू के सवाल पर जावेद अपनी जगह से उठा और उनके क़रीब आ कर सर झुका कर बोला,
“सॉरी अब्बू... मैं जमील अंकल से ये नहीं कह सकता कि आप घर पर नहीं हैं। ये तो झूट है और अम्मी ने झूट बोलने से मना किया है। हमारी मिस भी हमें बताती हैं कि झूट बोलना बुरी बात होती है इसलिए कभी भी झूट नहीं बोलना चाहिए।”
उसकी बात सुन कर उसके अब्बू हक्का-बक्का रह गए। जावेद की इस बात ने उन्हें सख़्त शर्मिंदा कर दिया था। जावेद इस इंतिज़ार में था कि अब उसे अब्बू की तरफ़ से डाँट पड़ेगी, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ उसके अब्बू सोफ़े से उठे, जावेद के गाल थप-थपाए और बोले, “शाबाश बेटे, आज तुमने ये बात साबित कर दी है कि बच्चे भी बड़ों को अच्छी बातें बता सकते हैं।” ये कह कर वो ड्राइंग-रूम से बाहर निकल गए।
जावेद की अम्मी सब कुछ समझ गई थीं। उन्होंने मुस्कुरा कर जावेद को देखा मगर कुछ बोलीं नहीं और वापिस किचन में चली गईं। दस-पंद्रह मिनट गुज़रे होंगे कि जावेद के कानों में अब्बू के ज़ोरदार क़हक़हे की आवाज़ आई। उसने घुटनों के बल थोड़ा सा उचक कर खिड़की से बाहर झाँका तो क्या देखता है कि उसके अब्बू और जमील अंकल लॉन में बिछी कुर्सियों पर बैठे एक दूसरे से बातों में मशग़ूल हैं और सामने मेज़ पर चाय रखी है।
जावेद को न जाने क्यों ये मंज़र बहुत अच्छा लगा और वो खिलौनों को वहीं छोड़ कर खिड़की में आ कर खड़ा हो गया और उन्हें देखने लगा। अचानक उसके अब्बू की नज़र उस पर पड़ गई। जावेद घबरा सा गया मगर ये देख कर उसकी ख़ुशी की इंतिहा नहीं रही कि अबू उसे देख कर मुस्कुराए और उसे बाहर आने का इशारा भी किया।
जमील साहब के रुख़स्त हो जाने के बा’द उसके अब्बू ने सारी बात उसकी अम्मी को भी बता दी थी और इस बात पर ख़ुशी का इज़हार भी किया कि जावेद इतनी सी उम्र में ही इतना समझदार और ख़ुद-एतिमाद है। उनकी ये बात सुन कर जावेद की अम्मी भी बहुत ख़ुश हुईं।
रात हुई तो सोने से पहले अम्मी ने जावेद को अपने पास लिटा कर उसे एक कहानी सुनाई। बग़ैर कहानी सुने उसे नींद नहीं आती थी। कहानी ख़त्म हुई तो जावेद भी सो चुका था। उसकी अम्मी ने उसकी पेशानी पर बोसा दिया और धीरे से बोलीं, “शाबाश बेटा... आज तुमने मेरा और अपने अब्बू का सर फ़ख़्र से बुलंद कर दिया है।”
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.