अनीस अब्र के शेर
तुझ पे जमी हैं सब की नज़रें
तेरी नज़र में कौन रहेगा
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मैं मुस्कुराता मगर दी न अश्क ने मोहलत
ख़ुशी जब एक मिली साथ ग़म हज़ार मिले
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'अब्र' दुनिया को छोड़ जाने का
इक बहाना तलाश करना है
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लफ़्ज़ यूँ ख़ामुशी से लड़ते हैं
जिस तरह ग़म हँसी से लड़ते हैं
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मौत की आरज़ू में दीवाने
उम्र-भर ज़िंदगी से लड़ते हैं
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आज इंसाँ को तपते सहरा में
बहता दरिया तलाश करना है
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फिर अहल-ए-इश्क़ की तख़्लीक़ होती है पहले
जुनूँ की आग में बरसों ख़मीर रहता है
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क्यूँ हाथ दिल से लगाते हो बार बार अपना
क्या दिल में अब भी कोई बे-नज़ीर रहता है
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