अनवर मसूद के शेर
इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए
अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
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दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरा
देख अब बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है
उर्दू से हो क्यूँ बेज़ार इंग्लिश से क्यूँ इतना प्यार
छोड़ो भी ये रट्टा यार ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार
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टैग : मिज़ाह
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पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
वो दर्द की आँधी की सर-ए-शाम चली थी
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आसमाँ अपने इरादों में मगन है लेकिन
आदमी अपने ख़यालात लिए फिरता है
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टैग : आसमान
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सिर्फ़ मेहनत क्या है 'अनवर' कामयाबी के लिए
कोई ऊपर से भी टेलीफ़ोन होना चाहिए
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टैग : मिज़ाह
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आइना देख ज़रा क्या मैं ग़लत कहता हूँ
तू ने ख़ुद से भी कोई बात छुपा रक्खी है
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हाँ मुझे उर्दू है पंजाबी से भी बढ़ कर अज़ीज़
शुक्र है 'अनवर' मिरी सोचें इलाक़ाई नहीं
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टैग : उर्दू
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मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच
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टैग : मज़दूर
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सोचता हूँ कि बुझा दूँ मैं ये कमरे का दिया
अपने साए को भी क्यूँ साथ जगाऊँ अपने
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तुम आ गए तो चमकने लगी हैं दीवारें
अभी अभी तो यहाँ पर बड़ा अँधेरा था
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टैग : स्वागत
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'अनवर' मिरी नज़र को ये किस की नज़र लगी
गोभी का फूल मुझ को लगे है गुलाब का
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अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में
समझ में आईं तो बातों का वो मज़ा भी गया
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जाने किस रंग से रूठेगी तबीअत उस की
जाने किस ढंग से अब उस को मनाना होगा
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रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
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टैग : रात
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दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी
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टैग : दिल
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डूबे हुए तारों पे मैं क्या अश्क बहाता
चढ़ते हुए सूरज से मिरी आँख लड़ी थी
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दोस्तो इंग्लिश ज़रूरी है हमारे वास्ते
फ़ेल होने को भी इक मज़मून होना चाहिए
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नज़दीक की ऐनक से उसे कैसे मैं ढूँडूँ
जो दूर की ऐनक है कहीं दूर पड़ी है
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ऐ दिल-ए-नादाँ किसी का रूठना मत याद कर
आन टपकेगा कोई आँसू भी इस झगड़े के बीच
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नर्सरी का दाख़िला भी सरसरी मत जानिए
आप के बच्चे को अफ़लातून होना चाहिए
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मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'
कि उन के शर से क्या क्या ख़ैर के पहलू निकलते हैं
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टैग : दुश्मन
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साथ उस के कोई मंज़र कोई पस-ए-मंज़र न हो
इस तरह मैं चाहता हूँ उस को तन्हा देखना
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हमें क़रीना-ए-रंजिश कहाँ मयस्सर है
हम अपने बस में जो होते तिरा गिला करते
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मस्जिद का ये माइक जो उठा लाए हो ऐ 'अनवर'
क्या जानिए किस वक़्त अज़ाँ देने लगेगा
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आस्तीनों की चमक ने हमें मारा 'अनवर'
हम तो ख़ंजर को भी समझे यद-ए-बैज़ा होगा
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'अनवर' उस ने न मैं ने छोड़ा है
अपने अपने ख़याल में रहना
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आँखें भी हैं रस्ता भी चराग़ों की ज़िया भी
सब कुछ है मगर कुछ भी सुझाई नहीं देता
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जुदा होगी कसक दिल से न उस की
जुदा होते हुए अच्छा लगा था
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इधर से लिया कुछ उधर से लिया
यूँही चल रहे हैं इदारे तिरे
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बे-हिर्स-ओ-ग़रज़ क़र्ज़ अदा कीजिए अपना
जिस तरह पुलिस करती है चालान वग़ैरा
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वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
ग़म-ए-इश्क़ पर जो 'अनवर' कोई सेमिनार होता
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बजट मैं ने देखे हैं सारे तिरे
अनोखे अनोखे ख़सारे तिरे
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सुना है आज का मौज़ू-ए-मज्लिस-ए-तन्क़ीद
वो शेर है कि अभी मैं ने जो कहा भी नहीं
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कहूँ ऐ ज़ौक़ क्या हाल-ए-शब-ए-हिज्र
कि थी इक इक घड़ी सौ सौ महीने
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