संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल53
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गीत6
फ़िल्मी गीत10
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल 53
अशआर 44
ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना
थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें
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मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से
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रोक सकता हमें ज़िंदान-ए-बला क्या 'मजरूह'
हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं
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लोरी 1
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चित्र शायरी 14
हम हैं राही प्यार के हम से कुछ न बोलिए जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए दर्द भी हमें क़ुबूल चैन भी हमें क़ुबूल हम ने हर तरह के फूल हार में पिरो लिए धूप थी नसीब में धूप में लिया है दम चाँदनी मिली तो हम चाँदनी में सो लिए दिल का आसरा लिए हम तो बस यूँही जिए इक क़दम पे हँस लिए इक क़दम पे रो लिए राह में पड़े हैं हम कब से आप की क़सम देखिए तो कम से कम बोलिए न बोलिए
वीडियो 27
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