शीन काफ़ निज़ाम के शेर
चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा
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गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'
चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा
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तू अकेला है बंद है कमरा
अब तो चेहरा उतार कर रख दे
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मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे
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दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
सख़्त जाँ में भी नर्म गोशे हैं
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याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
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जिन से अँधेरी रातों में जल जाते थे दिए
कितने हसीन लोग थे क्या जाने क्या हुए
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कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है
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अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग
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कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया
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आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
मिल गया तो सोचता हूँ क्या करूँ
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अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
उस ने किरदार बदल कर मिरा क़िस्सा लिख्खा
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टैग : शोहरत
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ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेकिन
ज़ख़्म को तू ज़बान कब देगा
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निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई
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बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को
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दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे
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आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
रस्तों की भीड़-भाड़ में दुनिया बिखर गई
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यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख़्म भर गए
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बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा
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ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं
लेकिन यहाँ तो रेन-बसेरे थे क्या हुए
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पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
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किसी के साथ अब साया नहीं है
कोई भी आदमी पूरा नहीं है
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सुन लिया होगा हवाओं में बिखर जाता है
इस लिए बच्चे ने काग़ज़ पे घरौंदा लिख्खा
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साहिलों की शफ़ीक़ आँखों में
धूप कपड़े उतार कर चमके
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ख़ामोश तुम थे और मिरे होंट भी थे बंद
फिर इतनी देर कौन था जो बोलता रहा
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धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आँसुओं का घर छोड़ा
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उदासी अकेले में डर जाएगी
घड़ी-दो-घड़ी को ख़ुशी भेज दे
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एक आसेब है हर इक घर में
एक ही चेहरा दर-ब-दर चमके
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बदलती रुत का नौहा सुन रहा है
नदी सोई है जंगल जागता है
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वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की तरतीब ले गई
अब फ़िक्र ये है दश्त की वुसअत भी ले न जाए
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ज़रा सी बात थी तेरा बिछड़ना
ज़रा सी बात से क्या कुछ हुआ है
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ख़ामोश तुम थे और मिरे होंठ भी थे बंद
फिर इतनी देर कौन था जो बोलता रहा
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