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प्रमुखतम आधुनिक शायरों में विख्यात/नई दिशा देने वाले शायर

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ज़फ़र इक़बाल की टॉप 20 शायरी

चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें

दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे

उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं

रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था

ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का

कि ध्यान ही रहा ग़म की बे-लिबासी का

अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना

पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना

अभी मेरी अपनी समझ में भी नहीं रही

मैं जभी तो बात को मुख़्तसर नहीं कर रहा

टकटकी बाँध के मैं देख रहा हूँ जिस को

ये भी हो सकता है वो सामने बैठा ही हो

पूरी आवाज़ से इक रोज़ पुकारूँ तुझ को

और फिर मेरी ज़बाँ पर तिरा ताला लग जाए

वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर दोस्त

तिरे फ़िराक़ में हम को हँसी बहुत आई

ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी

मिरे चारों तरफ़ तो ख़ूब अच्छा हो रहा है

आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली

एक दो दिन उसे कहियो कि यहाँ रह जाए

मुझ से छुड़वाए मिरे सारे उसूल उस ने 'ज़फ़र'

कितना चालाक था मारा मुझे तन्हा कर के

दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है

मैं तो इस शोर-ए-क़यामत में नहीं रह सकता

अपने ही सामने दीवार बना बैठा हूँ

है ये अंजाम उसे रस्ते से हटा देने का

रोक रखना था अभी और ये आवाज़ का रस

बेच लेना था ये सौदा ज़रा महँगा कर के

इस बार मिली है जो नतीजे में बुराई

काम आई है अपनी कोई अच्छाई हमारे

आँख के एक इशारे से किया गुल उस ने

जल रहा था जो दिया इतनी हवा होते हुए

झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'

आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए

मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'

साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं

ख़ुदा को मान कि तुझ लब के चूमने के सिवा

कोई इलाज नहीं आज की उदासी का

बदन का सारा लहू खिंच के गया रुख़ पर

वो एक बोसा हमें दे के सुर्ख़-रू है बहुत

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