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बस इक कशाकश का सिलसिला है अज़ल से जो आज तक रहा है

एहसान दरबंगावी

बस इक कशाकश का सिलसिला है अज़ल से जो आज तक रहा है

एहसान दरबंगावी

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    बस इक कशाकश का सिलसिला है अज़ल से जो आज तक रहा है

    फ़लक की मुनकिर ज़मीं रही है ज़मीं का मुनकिर फ़लक रहा है

    है अपने बाज़ू पे नाज़ जिन को वो ज़ोर बाज़ू का आज़मा लें

    वो साज़ की सम्त क्या बढ़ेगा जो हाथ शमशीर तक रहा है

    कहीं सैलाब-ए-कर्ब बन कर उबल पड़े नग़्मा ज़िंदगी का

    हटा ले अब अपना हाथ मुतरिब कि साज़ का दिल धड़क रहा है

    तुम्हारी बख़िया-गरी मुसल्लम मगर कहाँ तक रफ़ू करोगे

    मिरे गरेबाँ का हाल ये है जगह जगह से मसक रहा है

    लगेगी ठोकर जो रास्ते में तो अब शायद सँभल सकेंगे

    ख़याल इक उन का हम-सफ़र था सो वो भी दामन झटक रहा है

    रिवायतों की कमी नहीं है हिदायतों की कमी नहीं है

    क़दम क़दम पे खड़े हैं रहबर मगर ज़माना भटक रहा है

    मिज़ाज तेशों का मुज़्महिल है उठाओ साज़-ए-शिकस्ता 'एहसाँ'

    सुनाओ माज़ी के कुछ तराने कि हाल का दिल धड़क रहा है

    जुनूँ का मौसम जो रहा है तो अक़्ल का दिल धड़क रहा है

    इधर भी दामन पे हैं ख़राशें उधर भी आँचल मसक रहा है

    इधर दिल-ए-मुज़्तरिब ख़फ़ा है उधर तबस्सुम में भी हया है

    इधर ख़मोशी इक इल्तिजा है उधर तकल्लुम बहक रहा है

    मिरी नज़र को सुना रहा है तुम्हारी बे-ताबियों का क़िस्सा

    वो एक साया ब-रंग-ए-शोला जो चिलमनों से लपक रहा है

    हवा से चिलमन सरक रही है निगाह मेरी ठिठक रही है

    कि अब पराई समझ के इस को तुम्हारा जल्वा झिजक रहा है

    तुम्हारी उलझन समझ रहा हूँ मैं अपने दिल से उलझ रहा हूँ

    कि रास्ते बंद हो चुके हैं तो फिर ये क्यों राह तक रहा है

    तुम इस तरफ़ से गुज़र चुकी हो मगर गली गुनगुना रही है

    तुम्हारी पाज़ेब का वो नग़्मा फ़ज़ा में अब तक खनक रहा है

    मय-ए-मोहब्बत पिलाने वाली पियाला इस का छलक जाए

    अभी तो उतरी नहीं गले से अभी से 'एहसाँ' बहक रहा है

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