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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : ख़लील-उर-रहमान आज़मी

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

प्रकाशन वर्ष : 1959

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शोध एवं समीक्षा

उप श्रेणियां : शायरी तन्क़ीद

पृष्ठ : 167

सहयोगी : सालिम सलीम

muqaddama-e-kalam-e-aatish
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पुस्तक: परिचय

پیش نظرکتاب خلیل الرحمن اعظمی کا آتش پر لکھا مقالہ ہے جو رسالہ "نگار" میں قسط وار شائع ہوچکا ہے۔جس پر حضرت فراق گورکھپوری نے رائے دی تھی کہ"پچھلے دس سال سے جو کچھ میں آتش کے بارے میں سوچ رہا تھا ان خیالات کو آپ کے مضمون میں پاکر عجیب و غریب مسرت ہوئی۔"خلیل الرحمن اعظمی صاحب نے کلام آتش کا تجزیہ اس انداز سے کیا ہے کہ آتش کی شاعری کے بنیادی عناصر اور ان کے شعری مزاج کو سمجھنے میں آسانی ہوگی۔ابتدا میں تذکرہ کے عنوان سے آتش کے حالات زندگی کاجائزہ لیا گیا ہے۔جو مستند تذکروں ،تاریخوں اور تنقیدوں کی مدد سے تیار کیا گیا ہے۔جس سے آتش کے زندگی کے اہم نقوش اجاگر ہورہے ہیں۔اس کے بعد "چھان بین"کے نام سے آتش کے متعلق تمام آرا کو یکجا کیا گیا ہے۔اگلے باب میں آتش کے فن اور عشقیہ شاعری کا مکمل جائزہ ہے۔اس مکمل جائزے کے بعد مصنف نے غوروفکر کے بعد اپنی رائے قائم کی ہے۔جسے انھوں نے خوش اسلوبی اور شگفتگی کے ساتھ بیان کیا ہے۔جو اس کتاب کی وقعت کو بڑھا رہی ہے۔

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लेखक: परिचय

ख़लीलुर्रहमान आ’ज़मी को उर्दू की नई शाइ’री और आलोचना के शिखर-पुरूषों में शुमार किया जाता है। उनकी नज़्मों और ग़ज़लों ने, अपने समय के सवालों से जूझते हुए आदमी की गहरी वेदना को ज़बान दी, तो आलोचना ने 1960 और 1970 के दशकों में, एक संतुलित और वस्तु-परक दृष्टि देकर नए शाइ’रों का मार्गदर्शन किया। 1927 में आ’ज़मगढ़ में जन्मे आ’ज़मी ने मुस्लिम युनिवर्सिटी अ’लीगढ़ में शिक्षा पाई और वहीं शिक्षण कार्य किया। बी़ ए़ करने के दौरान ही ख़्वाजा हैदर अ’ली ‘आतिश’ पर अपने आलोचनात्मक लेख से मशहूर हो गए। 1947 में, ट्रेन से देहली से अ’लीगढ़ के सफ़र के दौरान दंगाइयों का हमला हुआ और तक़रीबन मुर्दा हालत में अस्पताल लाए गए। ये घटना सारी ज़िन्दगी उनके दिल-ओ-दिमाग़ पर तारी रही। 1955 में पहला कविता-संग्रह ‘काग़ज़ी पैरहन’, 1965 में दूसरा संग्रह ‘नया अह्‌दनामा’ और 1983 में ‘ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी’ नाम से तीसरी संग्रह उनके देहांत के बा’द छपा। उन्होंने 1978 में कैंसर से हार कर आख़िरी सांस ली।

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