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चुनिंदा शायरी

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने दिया

रात भर ताला'-ए-बेदार ने सोने दिया

हैदर अली आतिश

तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर

सँभल कर गिरने वालो हम तो गिर गिर कर सँभले हैं

आल-ए-अहमद सुरूर

जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता

मैं हमेशा तो मोहब्बत में नहीं रह सकता

ज़फ़र इक़बाल

अमीर-ए-कारवाँ है तंग हम से

हमारा रास्ता सब से अलग है

आबिद अदीब

ज़िंदगी तुझ से भी क्या ख़ूब तअल्लुक़ है मिरा

जैसे सूखे हुए पत्ते से हवा का रिश्ता

ख़लिश अकबराबादी

सुनाइए वो लतीफ़ा हर एक जाम के साथ

कि एक बूँद से ईमान टूट जाता है

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

मैं उम्र को तो मुझे उम्र खींचती है उलट

तज़ाद सम्त का है अस्प और सवार के बीच

एजाज़ गुल

इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी

अपने ख़ुदा को हम ने पुकारा कभी कभी

अर्श मलसियानी

शाहराहें दफ़अ'तन शो'ले उगलने लग गईं

घर की जानिब चल पड़ा है शहर घेरा कर तमाम

आबिद अदीब

दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही

क़ासिद-ए-जानाँ को क्या देता जो ख़िलअत माँगता

आग़ा अकबराबादी

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