ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल आहिस्ता चल ऐ उम्र-ए-रवाँ
पुर-कैफ़ चमन फिर मस्त हुआ मौसम भी हसीं और दिल भी जवाँ
वो लुत्फ़ कहाँ है मंज़िल में जो लुत्फ़ सफ़र में है नादाँ
जब मंज़िल पर आ जाएगी फिर पछताएगी ऐ पागल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
आख़िर इतनी जल्दी क्या है कुछ देख तो दिलकश नज़्ज़ारे
मीठे चश्मे ठंडे दरिया ऊँचे टीले बहते धारे
शबनम में कौसर की मौजें ज़र्रों में जन्नत के तारे
कोमल किरनों की गर्दन में ये बाँहें डाले जमुना जल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
जी-भर के ज़रा मैं देख तो लूँ इस एल्बम की सब तस्वीरें
पर्वत पर जा के पढ़ तो लूँ नक़्काश-ए-अज़ल की तहरीरें
झीलों से जा के सुन तो लूँ रंगीं फ़ितरत की तफ़्सीरें
मैं घूम तो लूँ बस्ती बस्ती वादी वादी जंगल जंगल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
सहरा में तरारे भरता है इक भोला-भाला मस्त हिरन
दरिया की तरफ़ बल खाती है इक सारस की लम्बी गर्दन
जोते हुए खेत में सोती है इक बीर-बहूटी की दुल्हन
पुर-कैफ़ हवा में उड़ता है इक दहशत का मारा हरियल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
नग़्मों से गूँजी जाती है ये दुनिया की महफ़िल सारी
पेड़ों पर मस्ती का आलम शामा की लय से है तारी
सरगम के सातों मीठे सुर तूती के लब पर हैं जारी
मदहोश पपीहा गाता है सहरा में दर्द-अंगेज़ ग़ज़ल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
शायद कौसर की मौजें भी ऐसे नग़्मे बिखरा न सकें
मुमकिन है ग़िल्माँ के गाने इतना तुझ को बहला न सकें
जन्नत की हूरें भी शायद इस रंगीं लय में गा न सकें
जिस पंचम सुर में गाती है ये बरखा की मीठी कोयल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
दो फूल कँवल के पानी में उन पर भौंरा है यूँ रक़्साँ
जिस तरह कबूतर हाथों से छोड़े कोई अल्हड़ नादाँ
शायद इन दोनों फूलों में है एक सलीम इक नूर जहाँ
मीना-बाज़ार बनाते हैं पानी में दो मदहोश कँवल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
वो चाँद की सीता भागती है डर के मारे सू-ए-गुलशन
वो उस का पीछा करता है तेज़ी से बादल का रावन
वो उस की जानिब बढ़ता है ये अपना बचाती है दामन
आकाश पे लंका का मंज़र दिखलाते हैं चाँद और बादल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
सरहद पर 'सलाम' इस मंज़िल की नद्दी नाले का नाम नहीं
चटियल मैदाँ फिर धूप कड़ी और पानी का इक जाम नहीं
पल भर के लिए पागल रुक जा गो रुकना तेरा काम नहीं
मैं भर लूँ मीठे चश्मों से ये अपनी मिट्टी की छागल
ऐ उम्र ज़रा आहिस्ता चल
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