आए हैं फ़ातिहा को वो गेसू सँवार के
आए हैं फ़ातिहा को वो गेसू सँवार के
चमके नसीब आज हमारे मज़ार के
देखो करिश्मे रहमत-ए-परवरदिगार के
क्या आड़े आई हश्र में मुझ शर्मसार के
तस्वीर बन गए हैं वो ज़िक्र-ए-विसाल पर
क़ुर्बान जाइए निगह-ए-शर्मसार के
रोने लगे वो देख के हाल-ए-ज़बूँ मिरा
एहसान मुझ पे हैं सितम-ए-रोज़गार के
तस्कीन ख़ाक बादा-ए-कौसर से हो उन्हें
जिन को मज़े हों याद मय-ए-ख़ुश-गवार के
कहते न थे कि आप तग़ाफ़ुल न कीजिए
अब क्यों गिले हैं नाला-ए-बे-इख़्तयार के
सोने दे शोर-ए-हश्र ज़रा चैन से हमें
जागे हुए बहुत हैं शब-ए-इंतिज़ार के
हुशियार कर दिया किसी ग़फ़लत-शिआ'र को
मम्नून हम हैं नाला-ए-बे-इख़्तयार के
सय्याद बाल-ओ-पर मिरे अब काटता है क्यों
दिन तो गुज़र चुके हैं सितमगर बहार के
झुँझला के बोल उट्ठे कि ले रख तू अपना दिल
झगड़े मुझे पसंद नहीं बार बार के
आईना ले के ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर देख लें
पूछें सबब न आप मिरे इंतिशार के
सरगर्म-ए-सैर वो हैं उधर लाला-ज़ार में
लाले इधर पड़े हैं दिल-ए-दाग़-दार के
शामत सवार हो न कहीं तुझ पे वाइज़ा
यूँ पीछे तू पड़ा है जो हर बादा-ख़्वार के
बे-इख़्तियार पहलू-ए-दुश्मन से वो उठे
थे शो'बदे ये नाला-ए-बे-इख़्तयार के
'नश्तर' तुम्हारा ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ बे-सबब नहीं
आशिक़ ज़रूर तुम हो किसी पर्दा-दार के
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