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आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

MORE BYसुलतान निज़ामी

    आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर गए

    हल्क़ा-ए-तंहाई से वो लोग बाहर गए

    साएबाँ ने तपते सूरज से मिलाई क्या नज़र

    अन-गिनत सूरज मिरे कमरे के अंदर गए

    क़ैंचियों को फिर नए सर से मिलेंगे मश्ग़ले

    फिर उड़ानों के लिए बाज़ू में शहपर गए

    वहशतों की दाद को मुहताज ही रहते मगर

    इस हवेली से गुज़रना था कि पत्थर गए

    मिशअल-ए-राह-ए-मोहब्बत हैं मिरे नक़्श-ए-क़दम

    जिन पे चल कर मंज़िलों तक आज रहबर गए

    इश्क़ की पाबंदियाँ बेकार हो कर रह गईं

    हम तसव्वुर में किसी के होंट छू कर गए

    आइने अल्फ़ाज़ के 'सुल्तान' करते हैं कमाल

    बल जबीनों पर पड़े हाथों में ख़ंजर गए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Aazadi ke baad dehli men urdu gazal (पृष्ठ 185)
    • रचनाकार : Professor Unwan Chishti
    • प्रकाशन : Asila Offset Printers, Kalan Mahal, Dariyaganj, New Delhi-6 (1989)
    • संस्करण : 1989

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