आँखें खुलीं तो ख़्वाब की ता'बीर छिन गई
आँखें खुलीं तो ख़्वाब की ता'बीर छिन गई
रक़्साँ जो आइने में थी तस्वीर छिन गई
क़दग़न है ज़ेहन-ओ-फ़िक्र पे क्या शहर-यार की
दानिशवरों की हुरमत-ए-तहरीर छिन गई
हर चंद नाज़ अपनी बलाग़त पे था उन्हें
वक़्त-ए-ख़ता प जुरअत-ए-तक़रीर छिन गई
अब दास्तान-ए-ग़म में तसलसुल नहीं रहा
लफ़्ज़ों के तार-ओ-पूद की ज़ंजीर छिन गई
बिकने लगे हैं अहल-ए-हुनर जब से दहर में
दस्त-ए-हुनर से अज़्मत-ए-ता'मीर छिन गई
यर्काँ-ज़दा है गुल्सिताँ अब की बहार में
फूलों की आब-ओ-ताब की तनवीर छिन गई
अब्र-ए-करम की कैसे तवक़्क़ो करें 'जमील'
हर्फ़-ए-दुआ की अज़्मत-ए-तासीर छिन गई
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