आप के इज़्न-ए-मुलाक़ात से जी डरता है
आप के इज़्न-ए-मुलाक़ात से जी डरता है
अपने बदले हुए हालात से जी डरता है
आप तज्दीद-ए-मोहब्बत का न दीजे पैग़ाम
आप की चश्म-ए-इनायात से जी डरता है
कल ये 'आलम था कि हर बात पे हँस देते थे
अब ये 'आलम है कि हर बात से जी डरता है
हम-नशीनो ज़रा कुछ देर मिरे साथ रहो
आज तन्हाई के लम्हात से जी डरता है
दिल में जब सोज़िश-ए-ग़म आग लगा देती है
चश्म-ए-अफ़्सुर्दा की बरसात से जी डरता है
चाहता हूँ कि ये दिल शहर-ए-निगाराँ हो मगर
इतनी रंगीनी-ए-जज़्बात से जी डरता है
ज़ख़्म कुछ और सुलग जाते हैं दिल के 'शाहिद'
अब तो इस तारों भरी रात से जी डरता है
- पुस्तक : Naqd-e-jan (पृष्ठ 27)
- रचनाकार : Shahid Akhtar
- प्रकाशन : madhya pradesh urdu academy Bhopal (2010)
- संस्करण : 2010
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