आरज़ू एक नदी हो जैसे
रोचक तथ्य
मासिक 'तख़लीक़' -अप्रैल 2008 लाहौर
आरज़ू एक नदी हो जैसे
ज़िंदगी तिश्ना-लबी हो जैसे
ये जवानी तिरी चाहत के बग़ैर
महज़ इक जाम-ए-तही हो जैसे
कल ही बिछड़े थे मगर लगता है
इक सदी बीत गई हो जैसे
'उम्र-भर क़र्ज़ चुकाया इस का
ज़ीस्त बनने की बही हो जैसे
फ़स्ल चाँदी की उगाना सर पर
वक़्त की जादूगरी हो जैसे
ज़ुल्म सह कर भी है ख़िल्क़त ख़ामोश
मोहर होंटों पे लगी हो जैसे
हर तरफ़ मौत का सन्नाटा है
शहर पर साढ़ सती हो जैसे
यूँ है इक मोड़ पे हैराँ सी हयात
रास्ता भूल गई हो जैसे
पढ़ के तारीख़ को यूँ लगता है
ये मज़ालिम की सदा हो जैसे
राख का ढेर है अब हसरत-ए-दिल
इक दुल्हन जल के मरी हो जैसे
शे'र कहता हूँ सलीक़े से 'शबाब'
ये भी आईना-गरी हो जैसे
- पुस्तक : Alami Urdu Adab, Jild 27 (पृष्ठ 156 (e)157)
- रचनाकार : Nand Kishor Vikram
- प्रकाशन : Publishers and Advertisers, Krishn Nagar, Delhi, (October 2008)
- संस्करण : October 2008
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