अब कि रुकना या किसी सम्त में चलना होगा
अब कि रुकना या किसी सम्त में चलना होगा
दिल ने चाहा था तो दिल ही को सँभलना होगा
ख़्वाब बन कर मिरी आँखों में उतरने वाले
शे'र बन कर तिरे होंटों पे मचलना होगा
ज़िंदगी जिन पे मिरे साथ हुआ करती थी
हाए उन रस्तों पे अब तन्हा टहलना होगा
वो मिरे सामने है आँख नहीं लग सकती
नींद को आज की शब ख़ुद ही बहलना होगा
आख़िरी बात ज़रा पहले अगर कर लेते
दूर जाना है तो फिर जल्दी निकलना होगा
आरज़ू तेरी सभी बातें नहीं चल सकतीं
वक़्त के साथ तुझे थोड़ा बदलना होगा
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