अब कोई जोर किसी तौर न सहना होगा
अब कोई जोर किसी तौर न सहना होगा
जो भी गुज़रेगी सर-ए-दार उसे कहना होगा
तीर बन कर मैं किसी वक़्त भी चल जाऊँगा
रिफ़अ'तों को हद-ए-मोहतात में रहना होगा
उस के पानी में अभी आतिश-ए-तासीर नहीं
अश्क-ए-हसरत को अभी आँख में रहना होगा
अहल-ए-साहिल से कहो अपना मुदावा कर लें
अब किनारों पे भी दरियाओं को बहना होगा
उम्र भर मेरे बदन पर था बगूलों का लिबास
किसी रहरव ने ये मल्बूस न पहना होगा
किसी मजनूँ को न हो आबला-पाई का गिला
अपनी औक़ात में सहराओं को रहना होगा
मैं गुज़रते हुए लम्हों का शिकारी हूँ 'ज़हीर'
ज़िंदगी को मिरे फ़ितराक में रहना होगा
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