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अब्र छाया था फ़ज़ाओं में तिरी बातों का

रफ़ीआ शबनम आबिदी

अब्र छाया था फ़ज़ाओं में तिरी बातों का

रफ़ीआ शबनम आबिदी

MORE BYरफ़ीआ शबनम आबिदी

    अब्र छाया था फ़ज़ाओं में तिरी बातों का

    कितना दिलकश था वो मंज़र भरी बरसातों का

    बुझती शम्ओं' के तअ'फ़्फ़ुन से बचाने तुझ को

    मैं ने आँचल में समेटा है धुआँ रातों का

    कोई शहनाई से कह दो ज़रा ख़ामोश रहे

    शोर अच्छा नहीं लगता मुझे बारातों का

    लाख दरवाज़े हों चुप और दरीचे ख़ामोश

    चूड़ियाँ राज़ उगलती हैं मुलाक़ातों का

    धूप भी तेज़ है 'शबनम' का भरोसा भी नहीं

    वक़्त भी बाक़ी नहीं अब तो मुनाजातों का

    RECITATIONS

    अज़रा नक़वी

    अज़रा नक़वी,

    अज़रा नक़वी

    अब्र छाया था फ़ज़ाओं में तिरी बातों का अज़रा नक़वी

    स्रोत :
    • पुस्तक : Mausam bhiigii aa.nkho.n kaa (पृष्ठ 56)
    • रचनाकार : Rafia Shabnam Abidi
    • प्रकाशन : Hassan Publications, Mumbai (1985)
    • संस्करण : 1985

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