अब्र-ए-बाराँ याद में उस की कब तक रोया करना है
अब्र-ए-बाराँ याद में उस की कब तक रोया करना है
वक़्त बता देना फिर मुझ को याँ पे सहरा करना है
तुझ को पाने की ख़्वाहिश थी अब तुझ को पाने के बा'द
घंटों बैठे सोचा करता हूँ के अब क्या करना है
ऐ चारागर वो आए और मैं भी उस को देख सकूँ
थोड़ी बीमारी रखनी है थोड़ा अच्छा करना है
अब तो ऐसा है कि बस तशहीर ज़रूरी है साहब
दिखलाना है दरिया दरिया लेकिन क़तरा क़तरा करना है
ऐ ग़म ये ले दिल मेरा पर इस पे क़ब्ज़ा मुश्किल है
सो मैं जैसा कहता जाऊँ तुझ को वैसा करना है
वक़्त तो ज़ाया न होता जो पहले से ये जानते हम
किस पर रोया करना है और कितना रोया करना है
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