अदा-ए-नुजूम-ओ-क़मर जानता हूँ
अदा-ए-नुजूम-ओ-क़मर जानता हूँ
मोहब्बत की हर रहगुज़र जानता हूँ
नहीं जानता कौन रहबर है मेरा
चला जा रहा हूँ जिधर जानता हूँ
रह-ए-इश्क़-ओ-उल्फ़त को आसाँ न समझो
बड़ी मुश्किलों की डगर जानता हूँ
तमन्ना-ए-दिल आरज़ू-ए-जिगर को
अबस मंज़िल-ए-रहगुज़र जानता हूँ
ये माना कि गुल-चीं की नज़रें हैं मीठी
मगर ख़ार अब बाल-ओ-पर जानता हूँ
कभी दे दिया चाँदनी ने जो धोका
हमेशा मैं शब को सहर जानता हूँ
न अब हम को तरह-ए-बहाराँ सुना तू
तिरी बाग़बाँ हर नज़र जानता हूँ
ज़माने के रंगीं तलातुम को देखो
कि हर संग-ए-रह को गुहर जानता हूँ
वो जाम-ए-मोहब्बत पिलाया जो तू ने
उसे ज़िंदगी का समर जानता हूँ
वही हुस्न की बारगह तेरी अब भी
कमी नूर-ए-अहल-ए-नज़र जानता हूँ
बुलंदी-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत कि तुझ को
दिल-ओ-जान ओ क़ल्ब-ओ-नज़र जानता हूँ
मिरी आस्तीं ही से निकलेंगे दुश्मन
जिन्हें आज तक बे-ख़बर जानता हूँ
नहीं जानते मुझ को अब तक वो 'रहबर'
कि जिन की मैं इक इक नज़र जानता हूँ
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