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अगर लगा कि मैं ये जंग हार सकता हूँ

शहराम सर्मदी

अगर लगा कि मैं ये जंग हार सकता हूँ

शहराम सर्मदी

MORE BYशहराम सर्मदी

    अगर लगा कि मैं ये जंग हार सकता हूँ

    तो दिल ही क्या मिरी जाँ जाँ भी वार सकता हूँ

    तू हौसला तो ज़रा रख कि वक़्त आने पर

    तिरे लिए मैं ख़ुदा को पुकार सकता हूँ

    मिरे यक़ीन-ओ-जुनूँ का तू इम्तिहाँ मत ले

    मैं पानियों पे तिरा नाम उभार सकता हूँ

    जिन आसमानों के तू ख़्वाब बुनती है उन की

    मैं इस ज़मीन पे ता'बीर उतार सकता हूँ

    अभी गिरफ़्त से बाहर ये काएनात नहीं

    बिगाड़ सकता हूँ इस को सँवार सकता हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : किताब गुमराह कर रही है (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार :शहराम सर्मदी
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2018)
    • संस्करण : First

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