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बाग़बाँ पर ज़ोर चलता है न कुछ सय्याद पर

तिलोकचंद महरूम

बाग़बाँ पर ज़ोर चलता है न कुछ सय्याद पर

तिलोकचंद महरूम

MORE BYतिलोकचंद महरूम

    बाग़बाँ पर ज़ोर चलता है कुछ सय्याद पर

    सख़्तियाँ करता हूँ मैं अपने दिल-ए-नाशाद पर

    उन का रो देना मज़ार-ए-कुश्ता-ए-बेदाद पर

    अब्र-ए-नैसाँ की है बारिश गुलशन-ए-बर्बाद पर

    वो भी हैं अफ़्सुर्दा मर्ग-ए-आशिक़-ए-नाशाद पर

    कहने वाला कौन है अब मर्हबा बेदाद पर

    किस गिरफ़्तार-ए-क़फ़स की आह-ए-आतिश-बार से

    बिजलियाँ गिरने लगी हैं ख़ाना-ए-सय्याद पर

    उन से क्या ज़िक्र-ए-तलातुम-ख़ेज़ी-ए-दरिया-ए-इश्क़

    जो तुले बैठे हों नासेह हरचे बादा-बाद पर

    या ख़याल-ए-अबरू-ए-ख़ूबाँ से दिल को बाज़ रख

    या रग-ए-गर्दन को रख दे ख़ंजर-ए-फ़ौलाद पर

    इश्क़-ए-सादिक़ को गवारा क्यूँ हुआ क्यूँ-कर हुआ

    हीला-ए-परवेज़ ग़ालिब तेशा-ए-फ़र्हाद पर

    बा'द मुर्दन रूह तेरे ख़ानमाँ-बर्बाद की

    होगी आवारा फ़ज़ा-ए-निकहत-ए-बर्बाद पर

    हल्का-ए-दाम-ए-अलाएक़ बंद-ए-मज़हब क़ैद-ए-नंग

    किस क़दर पाबंदियाँ हैं फ़ितरत-ए-आज़ाद पर

    इस क़दर बढ़ते गए क़िस्से कि दफ़्तर हो गए

    हाशिए चढ़ते गए दिल तिरी रूदाद पर

    नाला-कश हो गर तिरा ग़म-ए-दीदा-ए-हिज्राँ-नसीब

    फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत चौंक उठे फ़रियाद पर

    इस में मे'मार-ए-हस्ती मस्लहत थी कौन सी

    ऐसा क़स्र-ए-ख़ुशनुमा और रेत की बुनियाद पर

    याद जिस की दिल का मेरे हाल कर देती है ग़ैर

    दिल मुझे मजबूर करता है उसी की याद पर

    दफ़्न है हिन्दोस्ताँ की इस में तहज़ीब-ए-क़दीम

    फूल बरसा सबा ख़ाक-ए-जहान-आबाद पर

    दिल है बे-ज़ौक़-ए-ग़ज़ल 'महरूम' लेकिन चंद शे'र

    लिख दिए हैं हज़रत-ए-'अरमान' के इरशाद पर

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