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बाज़ार-ए-ज़िंदगानी में सामान की तरह

सागर सरफ़राज़

बाज़ार-ए-ज़िंदगानी में सामान की तरह

सागर सरफ़राज़

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    बाज़ार-ए-ज़िंदगानी में सामान की तरह

    मैं बिक रहा हूँ यूसुफ़-ए-कनआ'न की तरह

    जादू किसी का मुझ पे असर कर पाएगा

    पहना है तुझ को नक़्श-ए-सुलैमान की तरह

    देख तेरे हिज्र ने क्या हाल कर दिया

    सीना है मेरा चाक गरेबान की तरह

    आलाम-ए-रोज़गार में उलझी है ज़िंदगी

    जानाँ तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-परेशान की तरह

    मुरझा गए हैं सारे तमन्नाओं के गुलाब

    ख़ाली पड़ा हुआ हूँ मैं गुलदान की तरह

    बरसों की आश्नाई को यकसर भुला दिया

    पेश रहा है वो किसी अंजान की तरह

    दिल की ज़मीं पे यादों ने ख़ेमा लगा लिया

    बैठा है तेरा हिज्र भी दरबान की तरह

    जैसे किसी फ़क़ीर को सदक़ा दिया गया

    तुम ने किया है प्यार भी एहसान की तरह

    'सागर' को मौत गई मरने से पेशतर

    निकला है मेरे जिस्म से तू जान की तरह

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