बद-नसीबी की सूली पे नींद आ गई ख़्वाब देखा मगर ख़्वाब ने क्या दिया
बद-नसीबी की सूली पे नींद आ गई ख़्वाब देखा मगर ख़्वाब ने क्या दिया
अहमद जहाँगीर
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बद-नसीबी की सूली पे नींद आ गई ख़्वाब देखा मगर ख़्वाब ने क्या दिया
ख़ुश-गुमानी की ख़ुश-रंग क़िंदील ने ना-मुरादों को सहरा में भटका दिया
शामियाने में दरियाँ लपेटी गईं दोस्त उठने लगे कुछ ने कंधा दिया
बैन करते हुई औरतें हट गईं और मेरे जनाज़े को रस्ता दिया
दो घड़ी में मिरी अस्र ढलती हुई उठ के मग़रिब की दीवार से जा लगी
और मादूम होते हुए चाँद ने आह भरती हुई शब को पुर्सा दिया
मैं तवक़्क़ुफ़ के कोने में गोशा-नशीं 'मीर' साहिब की तस्वीर तकता रहा
शब्द पर्दे के पीछे से ज़ाहिर हुए शेर ने झुक के हाथों को बोसा दिया
आसमानी सहीफ़ों की तारीख़ है ना-शनासों में हादी सताए गए
पाक-बाज़ों पे तोहमत लगाई गई पारसाओं को दुनिया ने धोका दिया
जब ज़माने के हाथों सताए हुए चंद सादात मुल्तान में बस गए
माई धरती ने माथों की ताज़ीम की शाह-ए-दरिया ने तलवों को बोसा दिया
यार ‘अहमद-जहाँगीर' जीते रहो शहर में ख़ैर-मक़्दम का हंगाम था
वाह बरबत को सहरा में फेंक आए हो और मशअ'ल को मिट्टी में दफ़ना दिया
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