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बड़े बुज़ुर्गों का हम एहतिराम करते हैं

असग़र जुरअत

बड़े बुज़ुर्गों का हम एहतिराम करते हैं

असग़र जुरअत

MORE BYअसग़र जुरअत

    बड़े बुज़ुर्गों का हम एहतिराम करते हैं

    सफ़ेद रीश को झुक कर सलाम करते हैं

    सजाए रखते हैं इक महफ़िल-ए-‘अज़ा मुझ में

    वो लोग जो मिरे दिल में क़ियाम करते हैं

    मैं उन को दोस्त समझता था आज तक क्यूँकर

    जो दुश्मनी को शब-ओ-रोज़ 'आम करते हैं

    मैं उन फ़क़ीरों की हालत समझ नहीं सका हूँ जो

    हलाल चीज़ों को ख़ुद पर हराम करते हैं

    ख़मोशी उन को बसर कर नहीं सकेगी कभी

    वो ख़ुश-कलाम जो ख़ुद से कलाम करते हैं

    गुज़ारते हैं ये दिन धूप में जभी 'जुरअत'

    हम एक पेड़ के साए में शाम करते हैं

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