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बहुत लतीफ़ है ये मुख़्तसर जहाँ अपना

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

बहुत लतीफ़ है ये मुख़्तसर जहाँ अपना

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

MORE BYहबीब अहमद सिद्दीक़ी

    बहुत लतीफ़ है ये मुख़्तसर जहाँ अपना

    जिगर-नवाज़ भी तू तू ही राज़दाँ अपना

    तमाम दौलत-ए-हस्ती लुटा के माँगूँगा

    बहार-ए-हुस्न तिरी ज़ौक़-ए-जावेदाँ अपना

    बहम हुए हैं शनासा-ए-यक-दिगर दोनों

    निगाह-ए-नाज़ तिरी क़ल्ब-ए-ख़ूँ-चकाँ अपना

    शफ़क़ में सीना-ए-गुल में जुनूँ की वादी में

    बटा है ख़ून-ए-जिगर भी कहाँ कहाँ अपना

    ये आरज़ी ही सही आब-ओ-रंग-ए-हुस्न मगर

    लुटा रही है ख़िरद इन पे कारवाँ अपना

    जबीं-नवाज़ है जलवों की ये फ़रावानी

    कहाँ है आज सर-ए-नंग-ए-आस्ताँ अपना

    नवाज़िशात-ए-गुज़िश्ता कि अब ख़याली हैं

    बना रहा हूँ उन्हीं से मैं गुलिस्ताँ अपना

    अजीब ज़ौक़-फ़ज़ा जुस्तुजू की लज़्ज़त है

    भटकने दो भी ज़रा देर कारवाँ अपना

    हज़ार कुछ सही मुश्त-ए-ख़ाक-ए-इंसाँ में

    उरूज-ए-अर्श पे है फिर भी आस्ताँ अपना

    सूद ही ज़ियाँ ही रंज-ओ-राहत है

    है अक़्ल-ओ-होश के पर्दे में इम्तिहाँ अपना

    हैं आश्ना-ए-हवादिस तो ख़ौफ़-ए-बर्क़ ही क्या

    दिखा दिखा के बनाते हैं आशियाँ अपना

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