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बशर को मशअ'ल-ए-ईमाँ से आगही न मिली

आनंद नारायण मुल्ला

बशर को मशअ'ल-ए-ईमाँ से आगही न मिली

आनंद नारायण मुल्ला

MORE BYआनंद नारायण मुल्ला

    बशर को मशअ'ल-ए-ईमाँ से आगही मिली

    धुआँ वो था कि निगाहों को रौशनी मिली

    ख़ुशी की मा'रिफ़त और ग़म की आगही मिली

    जिसे जहाँ में मोहब्बत की ज़िंदगी मिली

    जिगर था कि कोई फाँस सी चुभी मिली

    जहाँ की ख़ाक उड़ाई कहीं ख़ुशी मिली

    ये कह के आख़िर-ए-शब शम' हो गई ख़ामोश

    किसी की ज़िंदगी लेने से ज़िंदगी मिली

    लबों पे फैल गई एक मौज-ए-ग़म अक्सर

    बिछड़ के तुझ से हँसी की तरह हँसी मिली

    तवाफ़-ए-शम्अ पतंगों का जल के भी है वही

    जिगर की आग से आँखों को रौशनी मिली

    सबात पा सकेगा कोई निज़ाम-ए-चमन

    फ़सुर्दा ग़ुंचों को जिस में शगुफ़्तगी मिली

    फ़लक के तारों से क्या दूर होगी ज़ुल्मत-ए-शब

    जब अपने घर के चराग़ों से रौशनी मिली

    अभी शबाब है कर लूँ ख़ताएँ जी भर के

    फिर इस मक़ाम पे उम्र-ए-रवाँ मिली मिली

    वो क़ाफ़िले कि फ़लक जिन के पाँव का था ग़ुबार

    रह-ए-हयात से भटके तो गर्द भी मिली

    वो तीरा-बख़्त हक़ीक़त में है जिसे 'मुल्ला'

    किसी निगाह के साए की चाँदनी मिली

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kulliyat-e-Anand Narayan Mulla (पृष्ठ 312)
    • रचनाकार : Anand Narayan Mull a
    • प्रकाशन : Qaumi Council Baraye-farogh Urdu (2010)
    • संस्करण : 2010

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