बयान सुन न सका जब कोई बयाँ की तरह
बयान सुन न सका जब कोई बयाँ की तरह
सुनाया हाल-ए-दिल-ए-ज़ार दास्ताँ की तरह
ये राज़-ए-'इश्क़ हमेशा को राज़ रह जाता
निगाह काम न करती अगर ज़बाँ की तरह
कहीं है बू-ए-तमन्ना गुल-ए-मुराद कहीं
निहाल दिल का है फैलाओ गुलसिताँ की तरह
किसी के ख़ंदा-ए-बे-जा का अब नहीं शिकवा
फ़ुग़ाँ भी दिल से निकलती नहीं फ़ुग़ाँ की तरह
ख़याल में हैं बहारें निगाह में गुलशन
गुज़र रही है क़फ़स में भी आशियाँ की तरह
बनी है दुश्मन-ए-हर-आरज़ू वही हसरत
लगा के सीने से रखता हूँ उस को जाँ की तरह
जबीन-ए-शौक़ बताएगी लज़्ज़त-ए-सज्दा
न दैर है न हरम उन के आस्ताँ की तरह
ज़माना आज भी ना-वाक़िफ़-ए-हक़ीक़त है
कभी बहार-ए-चमन हूँ कभी ख़िज़ाँ की तरह
मिटा के हस्ती-ए-दिल भी सुकून-ए-दिल न मिला
ज़मीं है साया-फ़गन सर पे आसमाँ की तरह
कभी न झुक के रहीं सर-बुलंदियाँ मेरी
ज़मीं पे 'उम्र गुज़ारी है आसमाँ की तरह
'मुनीर' उन की नज़र ने बदल दिया मुझ को
कि अब हँसी भी जो आती है तो फ़ुग़ाँ की तरह
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