बे-ख़ुदी में जब तिरी महफ़िल में दीवाने गए
बे-ख़ुदी में जब तिरी महफ़िल में दीवाने गए
मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर
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बे-ख़ुदी में जब तिरी महफ़िल में दीवाने गए
अहल-ए-दिल अहल-ए-हवस के फ़र्क़ पहचाने गए
कैसे कैसे हाल में देखा जनाब-ए-शैख़ को
महफ़िल-ए-रिंदाँ में जब भी वा'ज़ फ़रमाने गए
मय-कश-ए-आवारा इस दुनिया से क्या उठ कर गया
मय गई जाम-ओ-सुबू साक़ी-ओ-मय-ख़ाने गए
ऐ हसीनान-ए-जहाँ अहल-ए-हवस से होशियार
वर्ना हुस्न-ओ-इश्क़ से मरबूत अफ़्साने गए
फ़ैसला-कुन किस क़दर थी हाए ज़ालिम की अदा
दिल-जिगर क़ल्ब-ओ-नज़र के सारे अफ़्साने गए
अपने अपने बस की बातें अहल-ए-महफ़िल जान लें
शम-ए-महफ़िल के क़रीं फिर लीजे परवाने गए
ज़िंदगी-भर 'अस्र' गो रिंदों के हम-मशरब रहे
फिर भी दीवानों में फ़रज़ाने से गर्दाने गए
- पुस्तक : SAAZ-O-NAVA (पृष्ठ 225)
- प्रकाशन : Raghu Nath suhai ummid
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