बे-लौस हो जो ऐसा बशर ढूँड रहे हैं
बे-लौस हो जो ऐसा बशर ढूँड रहे हैं
गोया कि वो सहरा में शजर ढूँड रहे हैं
हम अहल-ए-जुनूँ दर्द-ए-मोहब्बत के हैं ख़ूगर
मरहम की तरह ज़ख़्म-ए-जिगर ढूँड रहे हैं
इख़्लास-ओ-मोहब्बत के शजर काटने वाले
क्यों मेहर-ओ-मुरव्वत के समर ढूँड रहे हैं
वो जिन के लिए तिश्ना थीं बे-ख़्वाब निगाहें
ख़ुद आज मिरी प्यासी नज़र ढूँड रहे हैं
करते नहीं सैलाब-ए-मसाइल का मुदावा
अख़बार सभी ताज़ा ख़बर ढूँड रहे हैं
पत्थर के मकीं रहते हैं पत्थर के नगर में
सीनों में क्यों हम उन के शरर ढूँड रहे हैं
दुनिया की तबाही पे कहाँ अपनी नज़र है
हम रोज़ नए इल्म हुनर ढूँड रहे हैं
सरकश भी मुनाफ़िक़ भी हैं करते नहीं तौबा
'शामा' वो दुआओं में असर ढूँड रहे हैं
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