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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बे-सुतूँ इक आसमाँ को देखते रहते हैं हम

फ़रहत इक़बाल

बे-सुतूँ इक आसमाँ को देखते रहते हैं हम

फ़रहत इक़बाल

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    बे-सुतूँ इक आसमाँ को देखते रहते हैं हम

    इक ख़ला-ए-बे-कराँ को देखते रहते हैं हम

    क्या बशर का हाल हो जाता है उन के दरमियाँ

    इस ज़मीन-ओ-आसमाँ को देखते रहते हैं हम

    रहबरों की भीड़ में कुछ राहज़न भी हैं शरीक

    अब तो मीर-ए-कारवाँ को देखते रहते हैं हम

    है ख़ता किस की सज़ा मिलती है किस को देखिए

    अब जलाल-ए-हुक्मराँ को देखते रहते हैं हम

    ठीक करने की तो कोशिश की मगर अंजाम-ए-कार

    अपने इस बिगड़े जहाँ को देखते रहते हैं हम

    हर घड़ी पेश-ए-नज़र रहती है 'फ़रहत' मस्लहत

    हर घड़ी सूद-ओ-ज़ियाँ को देखते रहते हैं हम

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