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चमकाना है चमकाइए इम्कान ग़ज़ल के

रज़ा वसफ़ी

चमकाना है चमकाइए इम्कान ग़ज़ल के

रज़ा वसफ़ी

MORE BYरज़ा वसफ़ी

    चमकाना है चमकाइए इम्कान ग़ज़ल के

    क्या चीज़ हैं तन्क़ीद के बीमार धुँदलके

    रौशन कोई पहलू निकल जाए ख़बर क्या

    देखो तो ज़रा दर्द के अंदाज़ बदल के

    बे-ख़ुद है पहुँच कर कोई सहरा-ए-अलम में

    महकी हुई गुलशन की फ़ज़ाओं से निकल के

    जो लोग समझते हैं तिरी राह को आसाँ

    देखें वो ज़रा धार पे तलवार के चल के

    आते हैं मिरी सम्त बहारों के सफ़ीने

    बे-नाम तसव्वुर के जज़ीरों से निकल के

    धोते हैं तिरे 'अहद-ए-मोहब्बत की सियाही

    आँसू शब-ए-फ़ुर्क़त मिरी आँखों से निकल के

    उफ़ उस की नज़र उस का जिगर हौसला उस का

    रक्खा है फ़साने को हक़ीक़त से बदल के

    ज़ीने से बहारों के गुज़रना नहीं आसाँ

    ये मरहला दुश्वार है दोस्त सँभल के

    जो आज रह-ए-ज़ीस्त में वीराने हैं 'वसफ़ी'

    मा'लूम है तुझ को ये चमन-ज़ार हैं कल के

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