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दर्द आख़िर दर्द है आह-ओ-फ़ुग़ाँ होगा ज़रूर

हमदम सिद्दीकी

दर्द आख़िर दर्द है आह-ओ-फ़ुग़ाँ होगा ज़रूर

हमदम सिद्दीकी

MORE BYहमदम सिद्दीकी

    दर्द आख़िर दर्द है आह-ओ-फ़ुग़ाँ होगा ज़रूर

    आग लगती है जहाँ पर भी धुआँ होगा ज़रूर

    मैं ज़माने से ज़माना मुझ से बरहम है मगर

    एक दिन अपना ज़मीन-ओ-आसमाँ होगा ज़रूर

    लाख लहराती रहीं ये बिजलियाँ चारों तरफ़

    अंदलीबान-ए-चमन का आशियाँ होगा ज़रूर

    अज़्म-ए-मोहकम शर्त है रख़्त-ए-सफ़र में राह-रौ

    नज़्द-ए-मंज़िल एक दिन ये कारवाँ होगा ज़रूर

    कौन था जो फ़िक्र-ए-आलम पर अचानक छा गया

    हो हो कोई हमारे दरमियाँ होगा ज़रूर

    क़ब्ल इस के हर क़दम आगे बढ़े ये सोच कर

    सर जहाँ टूटा है दीवाना वहाँ होगा ज़रूर

    जाएज़ा लेते रहो 'हमदम' किताब-ए-ज़ीस्त का

    आने वाला कल तुम्हारा इम्तिहाँ होगा ज़रूर

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