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धोका भी नहीं था कोई उनवाँ भी नहीं था

ख़ालिद फ़तेहपुरी

धोका भी नहीं था कोई उनवाँ भी नहीं था

ख़ालिद फ़तेहपुरी

MORE BYख़ालिद फ़तेहपुरी

    धोका भी नहीं था कोई उनवाँ भी नहीं था

    ऐसे में जिए जाने का इम्काँ भी नहीं था

    क्या जानिए क्या सोच के वाँ डूब गए हम

    दरिया में तो इस दम कहीं तूफ़ाँ भी नहीं था

    आबाद सराबों से सदा इस का जहाँ था

    सहरा मिरे दिल सा कभी वीराँ भी नहीं था

    इक बात थी ये हम उसे सोचें कि सोचें

    हाँ इस के सिवा मसअला-ए-जाँ भी नहीं था

    ये जान के वो रक़्स किया अहल-ए-जुनूँ ने

    जो हाथ लगा उन के गरेबाँ भी नहीं था

    हर साँस निकलती है तिरी याद में डूबी

    और भूल के जीना तुझे आसाँ भी नहीं था

    कुछ फूल शगुफ़्ता मिरे होंटों पे सजे हैं

    आईना मुझे देख के हैराँ भी नहीं था

    फूलों के लहू से ये चमन-ज़ार था रौशन

    गुलशन में कहीं ख़ार-ए-मुग़ीलाँ भी नहीं था

    है बात बड़ी जान मिरी काम तो आई

    वो क़त्ल मुझे कर के पशेमाँ भी नहीं था

    इन मस्त निगाहों के इशारों को समझना

    मुश्किल भी नहीं था कोई आसाँ भी नहीं था

    दुनिया ये भला क्यूँ मिरे क़दमों में पड़ी है

    मैं इस के लिए इतना परेशाँ भी नहीं था

    पलकों को सिखा देते रह-ओ-रस्म भी 'ख़ालिद'

    थी हिज्र की शब और चराग़ाँ भी नहीं था

    स्रोत :
    • पुस्तक : Sitaron Mein Chamak Baqi Hai (पृष्ठ 43)
    • रचनाकार : Khalid Fatehpuri
    • प्रकाशन : Khalid Fatehpuri (2007)
    • संस्करण : 2007

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