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धूप और छाओं की फ़िक्रों से निकलना है मुझे

गुलशन बरेलवी

धूप और छाओं की फ़िक्रों से निकलना है मुझे

गुलशन बरेलवी

MORE BYगुलशन बरेलवी

    धूप और छाओं की फ़िक्रों से निकलना है मुझे

    चल पड़ा हूँ तो उसी राह पे चलना है मुझे

    मुझ से जो आगे हैं वो आगे चलने देंगे

    आगे बढ़ना है तो फिर राह बदलना है मुझे

    वैसे इस 'अह्द की क़द्रों का तक़ाज़ा है यही

    वक़्त के साथ बहर-हाल बदलना है मुझे

    मेरे ख़्वाबों का भरम तोड़ने वाले ये बता

    कब तलक यूँही ग़म-ए-'इश्क़ में जलना है मुझे

    ज़िंदगी एक महकता हुआ जादा ही नहीं

    सिर्फ़ फूलों पे क्या काँटों पे भी चलना है मुझे

    चाँद आँगन में उतरे ये अलग बात मगर

    एक बच्चे की तरह रोज़ मचलना है मुझे

    ग़म का सूरज ढला है ढलेगा शायद

    बर्फ़ की तरह शब-ओ-रोज़ पिघलना है मुझे

    मेरे माज़ी ने किया तर्क-ए-त'अल्लुक़ मुझ से

    अब तो हर हाल में तन्हा ही सँभलना है मुझे

    नफ़रत-ओ-बुग़्ज़-ओ-हसद की वो घुटन है 'गुलशन'

    कुछ भी हो जाए ये माहौल बदलना है मुझे

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