दिल का शीराज़ा मुनज़्ज़म नहीं होने पाता
दिल का शीराज़ा मुनज़्ज़म नहीं होने पाता
नाज़-ए-ख़ुद-राई मगर कम नहीं होने पाता
ख़ुद-परस्ती की हवस जिस में समा जाती है
वो मुकर्रम वो मुअज़्ज़म नहीं होने पाता
नज़्म नासूर हुआ जाता है धीरे धीरे
कारगर कोई भी मरहम नहीं होने पाता
एक सा रहता है ये दिल के निहाँ-ख़ाने में
बेश-ओ-कम दर्द-ए-शब-ए-ग़म नहीं होने पाता
कभी दूर और कभी क़ुर्ब लगा रहता है
मुस्तक़िल रिश्ता-ए-बाहम नहीं होने पाता
वादी-ए-दिल में चला आता है चुपके से कोई
कभी तन्हाई का आलम नहीं होने पाता
चोट लग जाए उन्हें गुल से तो गुलशन रोए
मिरी बर्बादी का मातम नहीं होने पाता
एड़ियाँ मारने वाले हैं ज़माने में बहुत
क्यों रवाँ चश्मा-ए-ज़मज़म नहीं होने पाता
दस्त-ओ-बाज़ू-ए-ख़िलाफ़त को बचा लेते अगर
सर-निगूँ अपना ये परचम नहीं होने पाता
जो भी आता है हवा दे के चला जाता है
कोई शो'ला कभी शबनम नहीं होने पाता
याद रख 'शाद' कभी हक़्क़-ओ-सदाक़त का चराग़
सरसर-ए-वक़्त से मद्धम नहीं होने पाता
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