दिल के दर पर क़ुफ़्ल पड़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
रोचक तथ्य
परवेज़ शाही को समर्पित
दिल के दर पर क़ुफ़्ल पड़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
ख़ामोशी अब शर्त-ए-वफ़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
बे-सौती अब सौत-ओ-सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
लफ़्ज़ों का दम टूट गया है तुम भी चुप हो हम भी चुप
कल तक तो झंकार सलासिल की थी जीने का पैग़ाम
आज ये कैसा वक़्त पड़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
गुलशन गुलशन सहरा सहरा किस ने फूँका ऐसा फ़ुसूँ
इक इक ताइर संग हुआ है तुम भी चुप हो हम भी चुप
दिल से रिश्ता टूट गया है अब तो ज़बाँ का भी 'शिबली'
इस से बढ़ कर कोई सज़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
- पुस्तक : Be-Chehrah Lamhe (पृष्ठ 20)
- रचनाकार : Alqama Shibli
- प्रकाशन : Shaharyaar Brothers Publications (1975)
- संस्करण : 1975
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