दिल पे कैसा ग़ुबार रहता है
दिल पे कैसा ग़ुबार रहता है
हर घड़ी बे-क़रार रहता है
चश्म-ए-मय-बार के तसव्वुर से
हल्का हल्का ख़ुमार रहता है
साथ उन का नहीं नसीब मिरा
फिर भी क्यों इंतिज़ार रहता है
अपने हिस्से से बढ़ के पा कर भी
ख़्वाहिशों का शुमार रहता है
मुस्कुरा दें तो सारे गुलशन में
मौसम-ए-दिल-बहार रहता है
आसमाँ उन के एक आँसू पर
मुद्दतों अश्क-बार रहता है
सामने जिन के लब नहीं खुलते
दिल उन्ही पर निसार रहता है
जिस्म लाग़र हो चाहे जितना भी
फिर भी जोबन पे प्यार रहता है
जीत पाता है राहवार मगर
सुर्ख़-रू शहसवार रहता है
फूल रहता है फूल ही हर जा
ख़ार हर जा ही ख़ार रहता है
साथ प्यारों का हो अगर 'शाहीन'
ज़िंदगी से भी प्यार रहता है
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