दुनिया-ए-ख़राबात से पहले भी कहीं था
दुनिया-ए-ख़राबात से पहले भी कहीं था
मैं अपनी मुलाक़ात से पहले भी कहीं था
आलम तो अभी कल के हैं तख़्लीक़ मिरे दोस्त
मैं अर्ज़-ओ-समावात से पहले भी कहीं था
मैं आज भी हूँ कल भी कहीं हूँगा यक़ीनन
और अर्सा-ए-औक़ात से पहले भी कहीं था
कहते थे मलाएक कि ये इंसान है फ़ित्ना
या'नी कि मैं ख़दशात से पहले भी कहीं था
लोगों को तो इदराक मिरा आज हुआ है
मैं सारी ख़ुराफ़ात से पहले भी कहीं था
हर शय की मिरे दम से ही पहचान हुई है
मैं कश्फ़-ओ-करामात से पहले भी कहीं था
मैं हज़रत-ए-इंसान अनल-इश्क़ अनल-हुस्न
आदम की हिकायात से पहले भी कहीं था
हर चीज़ मिरे वास्ते रक़्साँ है जहाँ की
मैं महफ़िल-ओ-नग़्मात से पहले भी कहीं था
जिस रात ख़ुदा-पाक ने इक़रार लिया था
'तहसीन' मैं उस रात से पहले भी कहीं था
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