दूर नज़रों से जो हो रहे हैं अभी एक दिन वो नज़ारे पलट आएँगे
दूर नज़रों से जो हो रहे हैं अभी एक दिन वो नज़ारे पलट आएँगे
ग़म का सैलाब जिस दम उतर जाएगा सारे टूटे किनारे पलट आएँगे
चाहतों ने कतर डाले हैं इन के पर अब न जा पाएँगे ये परिंदे कहीं
प्यार के मोती जूँ ही लुटाएगा तू ये मोहब्बत के मारे पलट आएँगे
हाजरा सी अगर है तिरी जुस्तुजू मेहरबाँ तुझ पे सहरा भी हो जाएगा
प्यास तेरी बुझाने को ऐ तिश्ना-लब मीठे पानी के धारे पलट आएँगे
ज़िंदगानी का मौसम मिरे दोस्तो एक जैसा हमेशा तो रहता नहीं
आए हैं बिन-बुलाए जो रंज-ओ-अलम दिन ख़ुशी के भी प्यारे पलट आएँगे
उस के रहम-ओ-करम पर है मुझ को यक़ीं मेरी दुनिया भी इक दिन वो चमकाएगा
नूर बिखरेगा दिल की ज़मीं पर ज़रूर आसमाँ पर सितारे पलट आएँगे
जो न फ़िरक़ा-परस्ती हसद दुश्मनी और तअ'स्सुब को जड़ से मिटाया गया
डर है झुलसाने को आश्ती की फ़ज़ा नफ़रतों के शरारे पलट आएँगे
मैं नहीं जानता मैं कहाँ था मगर 'शाद' सरगोशियाँ कर रहा था कोई
जा रहे हैं फ़लक से जो सू-ए-ज़मीं हश्र के दिन वो सारे पलट आएँगे
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