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एहसास की क़िंदील वो जलने नहीं देता

साजिद ख़ैराबादी

एहसास की क़िंदील वो जलने नहीं देता

साजिद ख़ैराबादी

MORE BYसाजिद ख़ैराबादी

    एहसास की क़िंदील वो जलने नहीं देता

    अफ़्कार को अशआ'र में ढलने नहीं देता

    वो चश्मा-ए-जज़्बात उबलने नहीं देता

    आँखों से मिरी अश्क निकलने नहीं देता

    गिर्दाब-ए-बला हद से निकलने नहीं देता

    चाहूँ जो सँभलना तो सँभलने नहीं देता

    अंदाज़-ए-अना है कि ये एहसास-ए-नदामत

    जो ज़ात के सहरा से निकलने नहीं देता

    नालाँ है मिरे ज़ेहन से ख़ुर्शीद-ए-तमन्ना

    जो बर्फ़ जमी है वो पिघलने नहीं देता

    घेरे है मुझे तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का वो लम्हा

    मौसम की तरह रंग बदलने नहीं देता

    बरसों जिसे समझाए थे आदाब-ए-मरासिम

    अब मुझ को वही शख़्स सँभलने नहीं देता

    है उस को सुलगते हुए मौसम से शिकायत

    रुख़ भी वो हवाओं का बदलने नहीं देता

    इस दौर-ए-तरक़्क़ी का ये ए'जाज़ है 'साजिद'

    फ़र्सूदा रिवायात पे चलने नहीं देता

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